चंडीगढ़-- अग्रजन पत्रिका ब्यूरो--
आम आदमी पार्टी (आप) पंजाब ने पराली की समस्या के लिए प्रदेश और केंद्र सरकार को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया है।
पार्टी हैडक्वाटर से जारी बयान के द्वारा सीनियर नेता और नेता प्रतिपक्ष हरपाल सिंह चीमा, उप नेता बीबी सरबजीत कौर माणूंके और प्रदेश महासचिव हरचन्द सिंह बरसट ने कहा कि पंजाब और केंद्र की निकम्मी, मौकाप्रस्त और दिशाहीण सरकारें किसानों को ही हर पक्ष से मारने पर तुली हुई हैं। पराली की समस्या इस की सटीक सहित मिसाल है। साढ़े तीन दशकों में केंद्र और पंजाब की किसी भी सरकार ने पराली के लाभदायक निपटारे के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाया। इस मामले में अमरिन्दर सिंह सरकार सब से निकम्मी सरकार साबित हुई है। जिस ने किसानों, जनता और आबो-हवा को लाभ पहुंचाने वाली दूरअन्देशी नीति तो क्या बनानी थी, बल्कि पराली के निपटारे के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट और नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेशों मुताबिक किसानों को बनता मुआवजा और हैपीसीडर आदि यंत्र भी मुहैया नहीं करवाए।
हरपाल सिंह चीमा ने कहा कि 6 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने पराली न जलाने के लिए प्रति एकड़ 2400 रुपए मुआवजा देने और 2015 में एनजीटी ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि पराली के निपटारे के लिए 2 एकड़ से कम जमीन के मालिक किसान को हैपीसीडर और अन्य जरुरी यंत्र सरकार मुफ्त मुहैया करे। जबकि 2 से 5 एकड़ वाले किसानों को यह यंत्र 5000 रुपए और 5 एकड़ से ज्यादा मालकी वाले किसानों को 15000 रुपए में दिए जाएं, परंतु पंजाब में न पिछली बादल सरकार और न ही मौजूदा अमरिन्दर सिंह सरकार ने किसानों को अपेक्षित मात्रा में यह यंत्र मुहैया करने में कोई रुचि नहीं दिखाई उल्टा फर्जी आंकड़ों पर आधारित ऐसी बयानबाजी की जिस में से बड़े घोटाले की दुर्गंध आ रही है।
हरपाल सिंह चीमा और बीबी माणूंके ने कैप्टन सरकार के उस दावे पर सवाल उठाया कि इस साल 75000 मशीनें (जिनमें लगभग 51000 पिछली हैं) का प्रबंध किया है। जिस के साथ इस सीजन में आग लगाने की घटनाओं में 40 प्रतिशत कमी आएगी, परंतु वास्तविकता यह है कि इस साल पराली पिछले साल के मुकाबले पराली जलाने में तीन गुणा बढ़ौतरी हुई है, जबकि धान के अधीन क्षेत्रफल पिछले साल की अपेक्षा ढाई लाख हैक्टेयर घटा है।
चीमा ने कहा कि फार्म हाऊस में बैठे अमरिन्दर सिंह ने किसानों को ‘भगवान भरोसे’ छोड़ दिया और कोरोना के बहाने से 2400 रुपए प्रति एकड़ मुआवजा देने से भी हाथ पीछे खींच लिए, जबकि यह मुआवजा पिछले साल के उन किसानों को दिया जाना था, जिन्होंने पराली नहीं जलाई थी और बाकायदा फार्म भरे थे, जो आज भी सम्बन्धित सोसायटियों में बेकार पड़े हुए हैं। ‘आप’ नेताओं ने सवाल किया कि क्या पिछले साल भी कोरोना था?
चीमा ने कहा कि किसान बेबस हो कर पराली जलाता है, जिस का सब से अधिक प्रभाव किसान और उसके बच्चों पर होता है। कोरोना के दौर में किसानों की यह मजबूरी बच्चों और बुजुर्गों के लिए ओर भी घातक है।
हरचन्द सिंह बरसट और बीबी माणूंके ने मांग की है कि पराली के निपटारे के लिए 6000 से 7000 प्रति एकड़ खर्च आता है। जिस की भरपाई धान पर प्रति क्विंटल 200 रुपए मुआवजा दे कर की जाए।
‘आप’ नेताओं मुताबिक यदि सरकार की नीयत सही होती तो बठिंडा थर्मल प्लांट को पराली पर चलाने की तजवीज रद्द न करती और प्रदेश में पराली पर आधारित बायो सीएनजी और बायो खाद प्लांट स्थापित करती।