Haryana
हरियाणा के शिक्षा विभाग में एसएस मिस्टे्रस के रूप में अपना सेवाकाल पूरा करके सेवानिवृति हुई शिक्षिका शकुंतला कुमारी को सरकार ने उसके भत्ते आज 28 साल बाद भी नहीं दिए
October 26, 2020 08:03 PM
-- अग्रजन पत्रिका----
गुरुग्राम,(ब्यूरो): हरियाणा के शिक्षा विभाग में एसएस मिस्टे्रस के रूप में अपना सेवाकाल पूरा करके सेवानिवृति हुई शिक्षिका शकुंतला कुमारी को सरकार ने उसके भत्ते आज 28 साल बाद भी नहीं दिए हैं। सरकार हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट तक में केस हार चुकी है। शकुंतला कुमारी का कहना है कि अदालत ने उन्हें न्याय मिला, लेकिन सरकार न्याय नहीं दे रही।
70 वर्षीय सेवानिवृत एसएस मिस्टे्रस शकुंतला देवी के मुताबिक वर्ष 1972 में उनकी नियुक्ति जेबीटी टीचर के रूप में हरियाणा शिक्षा विभाग में हुई थी। अपना 58 साल का सेवाकाल पूरा करके वे 30 अप्रैल 2008 को सेवानिवृत हो गई। हरियाणा सरकार के सर्विस रूल के मुताबिक ही उन्हें वर्ष 1992 में एडिशनल इंक्रीमेंट मिली थी। सेवानिवृति के समय सरकार ने उनकी इस इंक्रीमेंट को वापस ले लिया और उनकी सेवानिवृति पर मिलने वाले बेनिफिट्स से पैसा रिकर्व कर लिया। अपना हक पाने को शकुंतला कुमारी ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर की। जिस पर कोर्ट ने 25 जुलाई 2008 को उनके में निर्णय दिया।
इस निर्णय पर एसएस मिस्ट्रेस शकुंतला कुमारी को लगा कि अब उन्हें न्याय मिल गया है। लेकिन सरकार ने इस निर्णय की परवाह नहीं की और उन्हें उनका हक देने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। 2008 के निर्णय के बाद सरकार ने 6 साल बाद वर्ष 2014 में सुप्रीमकोर्ट में इस फैसले के खिलाफ याचिका दायर की। पीडि़त शकुंतला कुमारी व उनकेपति खट्टर एस. कुमार के मुताबिक याचिका दायर करने के चार साल बाद वर्ष 2018 में सुप्रीमकोर्ट ने भी निचली अदालत यानी हाईकोर्ट के 2008 में उनके हक में आए निर्णय को ही सही ठहराते हुए मौलिक शिक्षा निदेशक हरियाणा को आदेश दिए कि उनका हक उन्हें बिना देरी के दिया जाए। इसके बाद भी विभाग ने निष्क्रियता ही दिखाई। कई बार वे अधिकारियों से मिलने चंडीगढ़ भी गए। कोरोना का बहाना बनाकर अधिकारियों ने उनसे मिलने तक मना कर दिया। उनका हक ना देकर सीधे तौर पर सरकार के अधिकारियों ने अदालत की अवमानना की है।
अब सुप्रीमकोर्ट के निर्णय के दो साल बाद 2 मार्च 2020 को विभाग की ओर से जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी गुरुग्राम को उनका केस भेजा। उन्होंने कई बार पत्राचार विभाग से किया है, लेकिन उनका हक उन्हें अब तक नहीं मिला है। खट्टर सतीश कुमार की एक बार फिर से मांग है कि उनकी पत्नी का हक उन्हें दिया जाए। वे दोनों बुजुर्ग हो चुके हैं। जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं।