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गुरु रविदास ने अपने रुहानी वचनों से विश्व को भाईचारे और एकता बनाने का संदेश दिया : निर्मल सिंहविनम्रतापूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य ही ईश्वर का भक्त हो सकता है : चित्रा सरवारा

February 09, 2020 08:12 PM
अम्बाला :  अग्रजन पत्रिका से इंद्रा गुप्ता--गुरु रविदास ने अपने रुहानी वचनों से विश्व को भाईचारे और एकता बनाने का संदेश दिया। इतना ही नहीं उन्होंने समाज में फैले ऊंच नीच के भेदभाव को भी समाप्त करने का काम किया। आज जरूरत है हम उनके दिखाए हुए संदेशों पर चलकर समाज में भाईचारा और एकता बनाएं।  संत गुरु रविदास की 643वीं जयंती के अवसर पर श्री गुरु रविदास मंदिर भानोखेड़ी में आयोजित कार्यक्रम में आए श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए चौधरी निर्मल सिंह ने उपरोक्त उदगार प्रकट किए। उन्होंने कहा कि संत गुरु रविदास जी के उपदेश 7 दशक बाद भी वर्तमान समाज के लिए अत्यंत उपयोगी है।
 
वही दूसरी ओर श्री गुरु रविदास मंदिर घसीटपुर, बिहटा और तेपला में आयोजित कार्यक्रमों में बतौर मुख्यातिथि पहुंची चित्रा सरवारा ने गुरु रविदास जी की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गुरु रविदास के जन्म के बारे में एक दोहा प्रचलित है । ''चौदह से तैंतीस कि माघ सुदी पन्दरास। दुखियों के कल्याण हित प्रगटे श्री रविदास।'' उनके पिता राहू तथा माता का नाम करमा था। गुरु रविदास ने साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया था। उनकी समयानुपालन की प्रवृति तथा मधुर व्यवहार के कारण उनके सम्पर्क में आने वाले लोग भी बहुत प्रसन्न रहते थे। प्रारम्भ से ही रविदास जी बहुत परोपकारी तथा दयालु थे। साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष आनन्द मिलता था।  गुरु रविदास  ईश्वर-भजन तथा साधु-सन्तों के सत्संग में व्यतीत करते थे। गुरु रविदास ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया। उनका विश्वास था कि राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में एक ही परमेश्वर का गुणगान किया गया है।  उनका मानना था कि अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्याग कर विनम्रतापूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य ही ईश्वर का भक्त हो सकता है।
 
 
 
 
 
 
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