श्री गुरू रविदास जी ने समता-मूलक और भेदभाव-मुक्त सुखमय समाज की कल्पना की थी:
राष्टÑपति रामनाथ कोविंद ने श्री गुरु रविदास विश्व महापीठ के चौथे राष्टÑीय अधिवेशन को किया संबोधित
चंडीगढ़।अग्रजन पत्रिका ब्यूरो-- संत शिरोमणि श्री गुरु रविदास विश्व महापीठ के राष्टÑीय प्रवक्ता एवं चंडीगढ़ के प्रभारी कुलदीप मेहरा ने जानकारी दी कि संत शिरोमणि श्री गुरु रविदास विश्व महापीठ के चौथे राष्टÑीय अधिवेशन को राष्टÑपति रामनाथ कोविंद ने संबोधित किया। यह अधिवेशन नई दिल्ली के विज्ञान भवन में किया गया। इस अधिवेशन में मुख्यातिथि महामहिम राष्टÑपति रामनाथ कोविंद, विशिष्ट अतिथि राज्यपाल हरियाणा सत्यदेव नारायण आर्य एवं राज्यपाल उत्तराखंड बेबी रानी मौर्या रहें।
अधिवेशन को संबोधित करते हुऐ कोविंद ने कहा कि संत श्री गुरू रविदास ने समता-मूलक और भेदभाव-मुक्त समाज की सुखमय समाज की संकल्पना को रेखांकित करते हुए कहा कि ऐसे समाज एवं राष्टÑ के निर्माण के लिये संकल्पबद्ध होकर काम करना हम सभी का कर्तव्य है जहां समाज में समता रहे और लोगों की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी होती रहें। उन्होंने कहा कि गुरु रविदास जी जैसे संतों का आगमन सदियों में होता है गुरु जी चाहते थे कि सबका पेट भरे, कोई भूखा न रहे, सबका भला हो। उन्होंने कहा कि अच्छा इंसान वह है जो संवेदनशील है, समाज की मानवोचित मर्यादाओं का सम्मान तथा कायदे-कानून और संविधान का पालन करता है।
उन्होंने कहा कि यदि ऐसे संत शिरोमणि रविदास को किसी विशेष समुदाय तक बांध कर रखा जाता है तो मेरे विचार से, ऐसा करना, उनकी सर्व-समावेशी उदारता के अनुसार नहीं है। संत की न कोई जाति होती है, न संप्रदाय और न ही कोई क्षेत्र बल्कि पूरी मानवता का कल्याण ही उनका कार्य क्षेत्र होता है। इसीलिए संत का आचरण सभी प्रकार के भेद-भाव तथा संकीर्णताओं से परे होता है। कार्यक्रम की सफलता के लिए राष्टÑपति जी ने संत शिरोमणि श्री गुरु रविदास विश्व महापीठ के सभी पदधिकारियों को बधाई दी।
वही महापीठ के अंतरराष्टÑीय अध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद रविदास रत्न दुष्यंत कुमार गौतम ने राष्टÑपति का विश्व महापीठ के अधिवेशन में पहुंचने पर विशेषतौर पर अभिनंदन किया क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ है जब राष्टÑपति जी गुरु रविदास जी से जुड़े किसी धार्मिक कार्यक्रम में उपस्थित हुऐ हों। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि जिस भगवान ने इस हाड़ मांस के इंसान को बनाया है। वह च-चमडी, मा-मांस, र-रक्त इस प्रकार चमार का अर्थ हुआ सारा मानव जगत ही चमार है।