पंचकूला पंचकूला- अग्रजन पत्रिका से इंद्रा गुप्ता- श्री प्राचीन शिव मंदिर, सेक्टर 8 पंचकुला द्वारा मंदिर में पाँच दिवसीय श्री शिव कथा का आयोजन किया गया। जिसमें दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक एवं संचालक श्री आशुतोष जी महाराज की परम शिष्या साध्वी संयोगिता भारती जी ने कथा के पंचम व अंतिम दिवस में शिव व पार्वती जी के विवाह के साथ इस कथा का समापन किया। उन्होंने बताया कि मानव जीवन शिव व पार्वती के मिलन का एक दुर्लभ अवसर है। शिव भाव परमात्मा तथा पार्वती अर्थात् आत्मा। लेकिन आज का मानव अपने इस वास्तविक लक्ष्य से अनभिज्ञ है। मननशील प्राणी होते हुए भी वह उस तत्व पर विचार ही नहीं करता जिस पर मनन करके उसे जीवन का लक्ष्य मिल सकता है। सारे संसार का ज्ञान रखने वाला आदमी शिव व पार्वती के रहस्य से अपरिचित है। यही हालत हिमाचल में हिमवान व मैना की थी। अपने ही बेटी के रूप में साक्षात् शक्ति तथा द्वार पर खड़े भगवान भोलेनाथ को वह पहचान ही न पाए। लेकिन जव उनको नारद जी ने आकर वास्तविकता का बोध करवाया तो वह सत्य से परिचित हो पाये । मानव भी आज अपने ही भीतर बैठे परमात्मा को न जानने से दुखी व अशांत है। लेकिन वह उसको तब तक तक नहीें जान सकता जब तक उसके जीवन में नारद रूपी गुरू का आगमन नहीं होता। क्योंकि यह सृष्टि का अटल नियम है कि जिसे भी परमात्मा रूपी रहस्य की पुष्टि हुई, उसके जीवन में पहले पूर्ण गुरू का आगमन हुआ।
गुरू की पहचान बताते हुए साध्वी जी ने कहा कि गुरू शब्द दो शब्दों के मिलाप से बना है। गु और रू। गु भाव अंधकार और रू भाव प्रकाश। जो मानव के अंत: करण में व्याप्त अंधकार व ईश्वर संबंधी संदेहों को प्रकाश व आत्मज्ञान के माध्यम से तिरोहित कर दे वही पूर्ण व ब्रह्यनिष्ठ गुरू है। लेकिन आज ऐसे का संग प्राप्त न होने के कारण ही मानव का अंत: करण अंधकार से भरा हुआ है। जिस प्रकार बाहर अंधेरा हाने पर हम से भटक जाते हैं वैसी ही स्थिति आज परिवार, समाज, देश व राष्ट्र की है। चारों तरफ वैबनस्य कोलाहल, खून की होली, संस्कारहीनता नजर आ रही है। समाज में भाई भाई का शत्रु व पुत्र पिता को चंद रूपयों की खातिर मृत्यु के घाट उतारता हुआ नजर आ रहा है। लेकिन प्रश्न यह है कि ऐसी स्थितियों को सुधारा कैसे जाये । तो उतर यही है कि जैसे गणिका वेश्या, अंगुली माल डाकू, सज्जन ठग एक ब्रह्यनिश्ठ गुरू के ज्ञान के माध्यम से पापियों से भक्तात्मा की श्रेणी में आकर खडें हुए, वैसे ही आज व्यक्ति व समाज को भी ऐसे ही गुरू की आवश्यकता हैं। वही गुरू मानव में ब्रह्यज्ञान से शांति की स्थापना कर समाज को और फि र देश तथा विश्व को भी शांत कर सकता है । फिर ही समाज में एक भव्य क्रांति आ सकती है । कथा का समापन विधिवत् प्रभु की पावन आरती से किया गया।