Panchkula
अमरावती एनक्लेव में पांच दिवसीय श्रीमद् देवी भागवत कथा का शुभारंभ।
February 11, 2020 08:54 PM
पंचकूला-- अग्रजन पत्रिका से इंद्रा गुप्ता-- श्री वनखंडी दुर्गा मंदिर अमरावती एनक्लेव पंचकूला की 17वीं वर्षगाठ के अवसर पर मंदिर परिसर में पांच दिवसीय श्रीमद् देवी भागवत कथा का भव्य आयोजन किया जा रहा है। कथा के प्रथम दिवस का शुभारंभ अमरावती एनक्लेव के डायरेक्टर श्री हरगोबिंद गोयल जी ने माँ की पावन ज्योति को प्रज्वलित कर के किया। प्रथम दिवस कथा को वांचने हुए दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के संस्थापक एवं संचालक श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या कथाव्यास साध्वी विवेका भारती जी ने अपनी ओजस्वी वाणी से माँ की महिमा को भक्तों के सन्मुख रखा। साध्वी जी ने कहा यूं तो विश्व भर में विभिन्न रूपों में शक्ति की उपासना की जाती है। किन्तु उनमें से भारत ही ऐसा देश है जहाँ उसको माँ कहकर पुकारा जाता है। ‘माँ’ शब्द करूणा, प्रेम, माधुर्य का प्रतीक है। माँ अतुल्य, आनंद और मातृत्व का स्रोत है, जो सदा अक्षुण्ण, अबाध रूप में बहता है। माँ में एक और विशेषता है कि वह अपने बालक को हर कर्म का बोध करवाती है। यही बात श्रीमद् देवी भागवत महापुराण के महात्मय में स्पष्ट होती है।
जब माँ शक्ति की प्रेरणा से भगवान श्री कृष्ण सत्राजित को कहते हैं कि यह मणि राष्ट्र की समपति है और तुम राष्ट्र की इकाई। जब राष्ट्र किसी कठिन दौर से गुजर रहा हो तो केवल मात्र अपना हित साधना बुद्घिमता नहीं है। राष्ट्र की समस्या हमारी समस्या है और राष्ट्र के उत्थान में ही हमारा उत्थान है इसलिए प्रत्येक मानव को अपने कर्तव्य का भान होना चाहिए। परन्तु दु:ख की बात तो यह है कि हम यह तो जानते हैं कि हमारा राष्ट्रीय पक्षी मोर है, राष्ट्रीय पशु शेर है पर हमारा राष्ट्रीय धर्म क्या है यह नहीं जानते। माँ इस महात्मय के माध्यम से हमें राष्ट्रीय कर्तव्य के प्रति जागरूक होने की प्रेरणा देती है। हमारे आर्ष ग्रन्थों में पिता से शतगुणा पूज्या माँ को कहा है, कयोंकि माँ एक शिशु के निर्माण में श्रेष्ठ भूमिका निभाती है। जिस प्रकार लौकिक माँ अपने बालक के विकास के लिए कभी स्नेह की वर्षा करती है, तो कभी क्रोधित होती है। ठीक उसी प्रकार माँ भगवती जगदम्बिका भी हम मानवों के कल्याण हेतु विविध रूप धारण कर इस धरा पर अवतीर्ण होती है। इसी का एक प्रमाण नवरात्रों के दिनों में भी देखने को मिलता है, जिसमें माँ दुर्गा की नौ रूपों में पूजा होती है। प्रथम दिन माँ की शैलपुत्री के रूप में पूजा की जाती है। जो कि भक्ति में दृढता का प्रतीक है। माँ ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप किया था। जब उनकी परीक्षा के लिए सप्त ऋषि आए, तो माँ अपने संकल्प पर अडिग रही, चट्टान की भांति। इसलिए हमें भी माँ की ही भांति अपने लक्ष्य के प्रति अडिग रहना है एवं प्रभु की भक्ति को प्राप्त करना है। प्रथम दिवस कथा को विराम माँ की पावन आरती द्वारा दिया गया।