गौमाता राष्ट्रमाता
निवास तैंतीस कोटि देवों का इसमें
फिर क्यों हम संहार करें
पात्र है निष्काम सेवा की
कामधेनु अवतार मिले
पहले जानो फिर तुम तोलो
बंद दरवाजा खोलो ना
पढ़ो वेद और संस्कृति को जानो
राजनीति में बोलो ना
सच में क्या तुम आहार बनाना चाहते
गौमाता को सोचो तो
जिम्मेदार हो राष्ट्रहित के
कुरीतियों को रोको तो
खाते हम जो मन वो होता
फिर क्यों ऐसा करते हो
छोड़-छाड़ छप्पन भोगो को
मांस मदिरा की ओर क्यों बढ़ते हो
गौ माता ने दूध दिया तब
जाति धर्म ना सोचा था
खेतों में जब खाद थी पड़ती
फसल कमाल का होता था
भूमि भी पूजन के योग्य
तब ही मानी जाती है
प्रेम भाव से जब यह देखो
गोबर से लीपी जाती है
गौ ना होती तो पृथ्वी का
कैसे दोहन कर पाते हैं
अपार धन संपदा छिपी गर्भ में
कैसे वो पा जाते हम
नहीं मानना तो सब ना मानो
प्राण मगर क्यों हरते हो
कष्ट जो सामने पाते हो तुम तब
प्रभु का नाम क्यों जपते हो
सुनामी आती आंधी आती
तूफां जब चलकर आता है
बहा ले जाता सब वैज्ञानिक
तर्क वितर्क क्या कर जाता है
बचा न सका था कंस भी नगरी
कृष्ण ने अधिकार वो पाया था
एक वंश था एक ही कुल था
खानपान ने असर दिखाया था
दूध दही सब छोड़-छाड़
गौ मांस की चर्चा करते हो
खुद अपने ही दुश्मन बन बैठे
माता पर बार जो करते हो
छोड़ो अब तुम पाप ये करना
जिम्मेदार बन जाओ ना
जिद में अपनी भूल न करना
जल्दी होश में आओ ना
क्यों तुम सदा प्रलय आने के
बाद ही बातें करते हो
पहले नजर जब सब आता है
फिर क्यों अनदेखा करते हो
आज यह कहना उचित ही है
मांग ये बिल्कुल जायज है
राष्ट्रमाता इसको बनाना
पूजनीय सम्मान के लायक है
लेखिका: मंजू मल्होत्रा फूल