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कहानी इनकम टैक्स की:1860 में आया था इनकम टैक्स का पहला कानून; पहले सालाना छूट की सीमा 200 रुपए थी, अभी 2.5 लाख

February 02, 2021 08:34 PM
हिमाचल न्यूज़ अपडेट
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कहानी इनकम टैक्स की:1860 में आया था इनकम टैक्स का पहला कानून; पहले सालाना छूट की सीमा 200 रुपए थी, अभी 2.5 लाख
 
✍🏻नई दिल्ली
देश में इनकम टैक्स का पहला कानून 160 साल पहले आया था। 1860 में अंग्रेज अफसर जेम्स विल्सन ने पहला बजट पेश किया था। इसी में इनकम टैक्स कानून को जोड़ा गया था। देश के पहले बजट में 200 रुपए तक की सालाना कमाई वालों को इनकम टैक्स में छूट दी गई थी। अभी छूट की ये सीमा 2.5 लाख रुपए है। देश में 1961 का आयकर कानून लागू है। इसमें समय-समय पर संशोधन होते रहते हैं।
 
1860 में 200 रुपए से ज्यादा की कमाई पर टैक्स लगता था
देश के पहले बजट में 200 रुपए से 500 रुपए तक की सालाना आय वालों पर टैक्स का प्रावधान था। सालाना 200 रुपए से ज्यादा कमाने वालों पर 2% और 500 रुपए से ज्यादा कमाने वालों पर 4% टैक्स लगाने का प्रावधान किया गया था। इनकम टैक्स कानून में सेना, नौसेना और पुलिस कर्मचारियों को छूट दी गई थी। हालांकि, उस समय ज्यादातर कर्मचारी अंग्रेज ही थे। सेना के कैप्टन का सालाना वेतन 4,980 रुपए और नौसेना के लेफ्टिनेंट का सालाना वेतन 2,100 रुपए था। हालांकि, इनकम टैक्स के कानून का उस समय कड़ा विरोध हुआ था। उस समय के मद्रास प्रांत के गवर्नर सर चार्ल्स टेवेलियन ने भी विरोध किया था। विल्सन का ये कानून ब्रिटेन के इनकम टैक्स कानून की तरह ही था। ब्रिटेन में 1798 में तत्कालीन प्रधानमंत्री विलियम पिट ने भी सेना का खर्च निकालने के लिए इनकम टैक्स कानून बनाया था।
 
1858 में भारत में ब्रिटिश सरकार का राज शुरू हो गया
1857 में भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का राज था। भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर दी। इससे देशभर में आंदोलन छिड़ गया। इससे निपटने के लिए अंग्रेजों ने अपनी सेना के खर्च में बेहिसाब बढ़ोतरी कर दी। 1856-57 में अंग्रेजों ने सेना पर 1 करोड़ 14 लाख पाउंड खर्च किए थे। यह खर्च 1857-58 में बढ़ाकर 2 करोड़ 10 लाख पाउंड तक कर दिया गया। उस जमाने में 1 पाउंड 10 रुपए के बराबर हुआ करता था। एक नवंबर 1858 में ब्रिटेन की तत्कालीन महारानी विक्टोरिया ने घोषणा की थी कि अब भारत में ब्रिटिश सरकार की ही हुकूमत होगी। इसी दौरान 'द गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1858' आया। इस कानून के प्रावधानों के मुताबिक भारत के सभी आर्थिक मामलों का नियंत्रण भारत के पहले मंत्री (सेक्रेटरी ऑफ स्टेट) चार्ल्स वुड के हाथों में आ गया।
 
1857 की क्रांति में अंग्रेजों को नुकसान हुआ, तो इनकम टैक्स लगाया
1857 की क्रांति की वजह से 1859 में इंग्लैंड का कर्ज 8 करोड़ 10 लाख पाउंड पहुंच गया। इस समस्या से निपटने के लिए ब्रिटेन ने नवंबर 1859 में जेम्स विल्सन को भारत भेजा। विल्सन ब्रिटेन के चार्टर्ड स्टैंडर्ड बैंक के संस्थापक और अर्थशास्त्री थे। उन्हें भारत में वायसराय लॉर्ड कैनिंग की काउंसिल में फाइनेंस मेंबर (वित्त मंत्री) बना दिया गया। विल्सन ने 18 फरवरी 1860 को भारत का पहला बजट पेश किया। पहले ही बजट में पहली बार तीन टैक्स का प्रस्ताव दिया गया। पहला- इनकम टैक्स, दूसरा- लाइसेंस टैक्स और तीसरा- तंबाकू टैक्स। इन तीनों टैक्सों की घोषणा करते समय विल्सन ने मनुस्मृति का उदाहरण देते हुए कहा कि उनका ये कदम 'इंडियन' नहीं बल्कि 'भारतीय' ही है।
 
द इकोनॉमिस्ट मैग्जीन के फाउंडर थे जेम्स विल्सन
जेम्स विल्सन का जन्म 3 जून 1805 को स्कॉटलैंड में रॉकशायर परगने के होइक गांव में हुआ था। अपने माता-पिता की 15 संतानों में जेम्स चौथे थे। जेम्स का जन्म गरीबी में बीता। इसके बाद जेम्स और उसके छोटे भाई विलियम ने हैट बनाने का बिजनेस शुरू किया जो शुरुआत में सफल रहा। बाद में दोनों भाइयों ने लंदन में काम शुरू किया, लेकिन ज्यादा समय तक नहीं चल सका और कंपनी बंद करनी पड़ी। इसके बाद जेम्स ने 'द इकोनॉमिस्ट' मैग्जीन शुरू की और इसके संपादक-लेखक बन गए। 1844 में जेम्स ने अपनी सारी कमाई द इकोनॉमिस्ट में लगा दी। 'द इकोनॉमिस्ट' आज भी दुनिया की सबसे पॉपुलर मैग्जीन में गिनी जाती है। भारत आने के आठ महीने बाद यानी जुलाई 1860 में जेम्स बीमार हो गए। बीमारी की वजह से 11 अगस्त 1860 को उनका निधन हो गया।
 
1922 में नया इनकम टैक्स कानून आया, इसके बाद ही आयकर विभाग बना
असहयोग आंदोलन के समय 1922 में भारत में नया इनकम टैक्स कानून आया। इसी समय आयकर विभाग के विकास की कहानी भी शुरू हुई। नए कानून में आयकर अधिकारियों को अलग-अलग नाम दिए गए। 1946 में पहली बार परीक्षा के जरिए आयकर अधिकारियों की सीधी भर्ती हुई। इसी परीक्षा को ही 1953 में 'इंडियन रेवेन्यू सर्विस' यानी 'IRS' नाम दिया गया।
1963 तक आयकर विभाग के पास संपत्ति कर, सामान्य कर, प्रवर्तन निदेशालय जैसे प्रशासनिक काम थे। इसलिए 1963 में राजस्व अधिनियम केंद्रीय बोर्ड कानून आया, जिसके तहत केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) का गठन किया गया।
1970 तक टैक्स की बकाया राशि वसूल करने का अधिकार विभाग के राज्य प्राधिकारियों के पास था। लेकिन, 1972 में टैक्स वसूली के लिए नई विंग बनाई गई और कमिश्नर नियुक्त किए गए। इनकम टैक्स कानून में समय-समय पर बदलाव होते रहते हैं।
किस वित्तमंत्री के दौर में कितना बदला इनकम टैक्स ?
 
1949-50: देश के पहले वित्तमंत्री जॉन मथाई
आजाद भारत में पहली बार आयकर स्लैब्स में बदलाव किया गया। 10 हजार रुपए तक की आय पर एक चौथाई आना टैक्स कम किया गया। पहले स्लैब में एक आना से नौ पाई किया गया। दूसरे स्लैब में दो आना से नौ पाई टैक्स किया गया। आना भारत में पहले करेंसी हुआ करती थी। यह एक रुपये का 16वां हिस्सा होता था। यह 4 पैसे या 12 पाई में बंटा होता था। एक रुपए में 64 पैसे और 192 पाई होती थी।
 
1974-75ः वायबी चव्हाण
6,000 रुपए तक की आय पर कोई टैक्स नहीं था। 70 हजार रुपए से ज्यादा सालाना आय पर 70% टैक्स रखा गया था। सरचार्ज को मिलाकर कुल टैक्स 77% होता था। इससे पहले तो टैक्स 97.75% तक लगा करता था।
 
1984-85: विश्वनाथ प्रताप सिंह
स्लैब्स को 8 से घटाकर 4 किया। आय पर टैक्स को 61.87% से घटाकर 50% तक लाए। 18,000 रुपए की सालाना कमाई वालों पर कोई टैक्स नहीं था। 18,001 से 25 हजार रुपए तक 25% और 25,001 से 50,000 रुपए तक 30%, 50,001 से 10,000 रुपए तक की आय पर 40% और एक लाख रुपए से ज्यादा की आय पर 50% टैक्स लगता था।
 
1992-93: मनमोहन सिंह
स्लैब्स को 4 से घटाकर 3 किया। 30,000 से 50,000 रुपए सालाना कमाई पर 20% टैक्स लगता था। 50,000 से 1 लाख रुपए तक 30% और एक लाख रुपए से ज्यादा की कमाई पर 40% टैक्स लगता था।
 
1994-95: मनमोहन सिंह
दो साल बाद टैक्स स्लैब्स को एडजस्ट किया। रेट नहीं बदले। पहली स्लैब 35,000 से 60,000 रुपए की और इस पर 20% टैक्स, 60,000 रुपए से 1.2 लाख रुपए तक 30% और 1.20 लाख से ज्यादा कमाई पर 40% टैक्स रखा।
 
1997-98: पी चिदंबरम का ड्रीम बजट
उस समय 15, 30 और 40% रेट्स लागू थे। इन्हें घटाकर 10, 20 और 30% किया गया। पहली स्लैब 40,000 से 60,000 रुपए के बीच थी। दूसरी स्लैब में 60,000 से 1.5 लाख और तीसरी स्लैब 1.5 लाख रुपए से ऊपर की। 20 हजार रुपए के स्टैंडर्ड डिडक्शन का क्लॉज पहली बार डाला गया। जो लोग 75,000 रुपए तक का वेतन लेते हैं और 10% PF में देते हैं, उन्हें कोई टैक्स नहीं देना होगा।
 
2005-06: चिदंबरम
एक लाख रुपए तक की आय टैक्स-फ्री हुई। 1 लाख से 1.5 लाख रुपए तक 10%, 1.5 लाख से 2.5 लाख तक 20% और 2.5 लाख रुपए से ज्यादा कमाई पर 30% टैक्स लगाया गया।
 
2010-11: प्रणब मुखर्जी
1.6 लाख रुपए तक की आय टैक्स-फ्री हुई। 1.6 लाख से 5 लाख तक 10%, 5 लाख से 8 लाख की आय 20% और 8 लाख से ज्यादा की आय पर 30% टैक्स लगाया गया।
 
2012-13: मुखर्जी
2 लाख रुपए तक की आय टैक्स फ्री हुई। 2 लाख से 5 लाख की आय पर 10%, 5 लाख से 10 लाख रुपए की कमाई पर 20% और 10 लाख से ज्यादा की कमाई पर 30% टैक्स लगाया गया।
 
2014-15: अरुण जेटली
वेल्थ टैक्स को खत्म किया। सुपररीच यानी 1 करोड़ रुपए से ज्यादा की आय पर 2% सरचार्ज लगाया। 2016-17 के बाद से लोगों को वेल्थ टैक्स रिटर्न नहीं देना पड़ा।
 
2017-18: जेटली
2.5 लाख से 5 लाख रुपए की आय पर टैक्स 10% से घटाकर 5% किया। इनकम टैक्स के सेक्शन 87A की वजह से 3 लाख रुपए तक की आय पर टैक्स नहीं था। लोवर स्लैब को घटाकर 5% किया। 3 से 3.5 लाख पर सिर्फ 2,500 रुपए का टैक्स था।
 
प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है इनकम टैक्स का जिक्र
मनुस्मृति में आयकर के बारे में लिखा है कि शास्त्रों के अनुसार राजा कर लगा सकता है। करों का संबंध प्रजा की आय और व्यय से होना चाहिए। राजा को हद से ज्यादा कर लगाने से बचना चाहिए। करों की वसूली की ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि प्रजा अदायगी करते समय कठिनाई महसूस न करे।
मनुस्मृति के अलावा 2300 साल पहले लिखे गए 'कौटिल्य अर्थशास्त्र' में भी आयकर का उल्लेख मिलता है। कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में लिखा था- सरकार (राजा) की सत्ता, उसके राजकोष की मजबूती पर निर्भर करती है। राजस्व और कर सरकार के लिए आय है, जो उसे अपनी जनता (प्रजा) की सेवा, सुरक्षा और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए मिलती है।
रेखा कौशल हिमाचल प्रदेश शिमला।
 
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