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Chandigarh

विधान सभा में अनुभव और अध्ययन का संगम पॉलिसी निर्माण में बढ़ेगी विधायकों की भागीदारी, विशेषज्ञों से सीखे गुर

August 07, 2020 09:49 PM
चंडीगढ़, 7 अगस्त-- अग्रजन पत्रिका सत्यनारायण गुप्ता-नीति निर्माण में हरियाणा के विधायकों की भूमिका बढ़ने वाली है। विधान सभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता ने इसका पूरा खाका तैयार कर लिया है। इस सिलसिले में वीरवार को विधान सभा सचिवालय में विधायकों के लिए प्रशिक्षण कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी के तत्वावधान में हुई इस प्रशिक्षण कॉन्फ्रेंस में 10 विधायकों ने हिस्सा लिया। कोविड-19 के कारण सामाजिक दूरी संबंधित नियमों के पालन के लिए सभी विधायकों को एक साथ नहीं बुलाया जा सका।
 
विधान सभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता की अध्यक्षता में हुई प्रशिक्षण कॉन्फ्रेंस का संचालन सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी के सीईओ के. यतीश राजावत ने किया। कॉन्फ्रेंस में इस तथ्य पर गहन विमर्श हुआ कि गुरुग्राम ने विकास की बुलंदियों को कैसे छुआ, जबकि बड़े औद्योगिक ढांचे वाले फरीदाबाद में विकास की गति अपेक्षाकृत कम कैसे रही। गुरुग्राम की तर्ज पर हरियाणा के दूसरे शहरों के लिए भी विकास की योजनाएं तलाशी गईं।
इस मौके पर विधान सभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता ने कहा कि दुनिया जिस रफ्तार से आगे बढ़ रही है, उसी रफ्तार से नीतियां भी बनानी पड़ रही हैं। जाहिर है इन सभी नीतियों का समग्रता से अध्ययन करना हर जनप्रतिनिधि के लिए संभव नहीं है। इनके निहित उद्देश्यों को समझना और फिर उनके प्रभावी क्रियान्वयन की रूपरेखा तय करना भी आवश्यक है। उन्होंने कहा कि जितनी बड़ी जिम्मेदारी होती है, उतने ही व्यापक प्रशिक्षण और अनुभव की आवश्यकता रहती है। विधायकों का अधिकतर समय जन सामान्य के बीच गुजरता है। अनेक तरह की समस्याओं का अंबार उनके सामने होता है। उन्हें हल करने की जिम्मेदारी उनकी होती है।
गुप्ता ने कहा कि इन समस्याओं के समाधान के साथ-साथ विधानपालिका का मुख्य कार्य नीति निर्माण करना है। यह विडंबना है कि कालांतर में नीति निर्माण में विधायकों की भूमिका कम होती गई और इस कार्य के लिए भी तंत्र अफसरशाही पर निर्भर हो गया। उन्होंने कहा कि जनता जिन लोगों को अपना प्रतिनिधि चुनती है, उन्हें ही उसके लिए नीतियां बनानी चाहिए। नीतियों के निर्माण और उनके क्रियान्वयन में जनप्रतिनिधियों की भूमिका बढ़ाने के लिए इस प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की गई है। उन्होंने कहा कि जिनके लिए नीतियां बनाई जाती हैं, उनमें संबंधित पक्षों की राय लेनी आवश्यक है। इसके साथ ही नीतियों की समयावधि तय होनी चाहिए और यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि इनका पुनर्मूल्याकंन कब होगा। उन्होंने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि विधायकों में अध्ययन की प्रवृत्ति कम होने के कारण विधायिकी तंत्र कमजोर हुआ है। कॉन्फ्रेंस के दौरान विशेषज्ञों ने इस पर सुझाव दिया कि विधायकों को अपने पहले 3 वर्ष विधि निर्माण व्यवस्था के लिए ही समर्पित होने चाहिए। बाद के 2 वर्ष वे अपने क्षेत्र के लिए लगाएं।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी के सीईओ के. यतीश राजावत ने कहा कि इस प्रशिक्षण कॉन्फ्रेंस में जनता के बीच कार्य करने का अनुभव रखने वाले विधायक और नीति निर्माण की बारीकियों का अध्ययन करने वाले विशेषज्ञों का संगम हुआ है। उन्होंने विधायकों से आह्वान किया कि हर जिले में विकास की संभावनाएं अलग अलग प्रकार की हैं। शोधकर्ताओं के सहयोग से जनप्रतिनिधि इन संभावनाओं की तलाश कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हरियाणा विधान सभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता ने प्रत्येक बिल को पास करने से 5 दिन पूर्व विधायकों को उपलब्ध करवाने की अनिवार्यता लागू की है, जो सराहनीय कदम है। उन्होंने कहा कि इससे विधायक बिल का गहराई से अध्ययन कर सकेंगे तथा उस पर कारगर सुझाव मिल सकेंगे। उन्होंने कहा कि इस नियम से विधायकों में अध्ययन की प्रवृत्ति भी विकसित होगी। 
प्रशिक्षण के दौरान वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से जुड़े इंडिया डेवलपमेंट फाउंडेशन के अनुसंधान निदेशक एवं इंडियन स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी के डीन सुभाशीष गंगोपाध्याय ने कहा कि नीतियां भले ही देखने में एक वर्ग विशेष के लिए हो, लेकिन वास्तव में वे समग्र समाज के लिए होती हैं। उन्होंने शिक्षा नीति का उदाहरण देते हुए कहा कि इसके लाभार्थी सिर्फ विद्यार्थी नहीं हैं, बल्कि वे सभी लोग हैं, जो शिक्षातंत्र में डॉक्टर बने युवाओं की सेवाएं लेते हैं।
माइक्रो फाइनेंस इंस्टीट्यूशंस नेटवर्क के सीईओ हर्ष श्रीवास्तव ने गुरुग्राम और फरीदाबाद महानगरों के विकास का तुलनात्मक ब्योरा दिया। उन्होंने हरियाणा के दूसरे शहरों के लिए भी औद्योगिक विकल्प सुझाए। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की विंग लेजिस्लेटिव एंड सिविक एंगेजमेंट के मुखिया चक्षु रॉय ने नीति निर्माण और उनके क्रियान्वयन में खामियों को चिह्नित करते हुए उन्हें दुरुस्त करने के उपाय बताए। कॉन्फ्रेंस का अंतिम सत्र परस्पर विचार विमर्श एवं शंका समाधान का रहा। इसमें विधायकों ने अपने अपने विधान सभा क्षेत्रों में निहित विकास की संभावनाओं पर जानकारी हासिल की।
 
 
 
 
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