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पीवी नरसिम्हा राव "जयंती बिशेष" भारत की आर्थिक ताकत की नींव रखने और विदेश नीति को नई दिशा देने वाले प्रधानमंत्री*

June 28, 2020 09:12 PM
नई दिल्लीः साल 1991 ने भारत को पूरी तरह से बदल दिया था. इस साल भारत ने आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत हुई थी और बाजार को विदेशी पूंजी के लिए खोला जाने लगा था. आर्थिक तौर पर देश को मजबूती देने वाले इस कदम के पीछे थे तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह और उनके इस सुधार के जनक थे तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव. देश की तस्वीर और तकदीर बदलने वाले नरसिम्हा राव की आज 99वीं जयंती है और देश उनके इस बड़े योगदान को कभी नहीं भूल सकता.
 
*भारत में आर्थिक सुधार के जनक थे राव*
 
नरसिम्हा राव का जन्म 28 जून 1921 को तत्काली हैदराबाद राज्य के वारंगल में हुआ था. आज ये तेलंगाना राज्य का हिस्सा है. पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बाद पीएम बने नरसिम्हा राव देश में गठबंधन सरकार चलाने वाले दूसरे प्रधानमंत्री थे और अल्पमत की सरकार होने के बावजूद उन्होंने देश में बड़े बदलाव किए और इसी कारण उन्हें भारतीय आर्थिक सुधार का जनक माना जाता है.
 
नरसिम्हा राव से पहले भारतीय लोकतंत्र के शीर्ष पद तक सिर्फ उत्तर भारतीय राजनीतिज्ञ ही पहुंचे थे. देश के प्रधानमंत्री बनने वाले वो दक्षिण भारत के पहले राजनेता थे. 1991 से 1996 के बीच वो देश के नौवें प्रधानमंत्री के तौर पर आसीन रहे. उन्होंने आर्थिक संकट से जूढ रहे देश को बुरी स्थिति से बाहर निकाला.
 
*प्रधानमंत्री के साथ ही निभाई रक्षा और विदेश मंत्री की जिम्मेदारी*
 
खास बात ये रही है कि नरसिम्हा राव ने प्रधानमंत्री रहते हुए अपनी सरकार में रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री की जिम्मेदारी भी संभाली और उसके चलते देश की रक्षा और विदेश नीति में भी बदलाव आए. सोवियत संघ के बंटवारे के बाद नरसिम्हा राव ने उसकी घटती ताकत को समझा और देश का रुझान ज्यादा ताकतवर अमेरिका की ओर किया. इसका नतीजा हुआ कि भारत और अमेरिका की नौसेना के बीच ‘मालाबार युद्धाभ्यास’ की शुरुआत हुई.
 
1992 में नरसिम्हा राव ने ही इस्राइल के साथ भारत के रिश्तों की खुले तौर पर शुरुआत की और इसका नतीजा हुआ कि राव ने इस्राइल को नई दिल्ली में अपना दूतावास खोलने की इजाजत दी. इसके बाद से ही दोनों देशों के रिश्तों में साल दर साल गर्माहट ही आई.
 
*बाबरी मस्जिद विध्वंस बना कार्यकाल पर दाग*
 
हालांकि 1992 में बाबरी मस्जिद गिराने जाने की घटना राव के कार्यकाल पर सबसे बड़ा दाग बनी और उसके बाद देश के कई इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं भी हुईं. साथ ही 1993 के मुंबई धमाकों ने भी राव की सरकार को संकट की स्थिति में डाला.
 
राव पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने आजाद भारत की पहली गठबंधन सरकार को पूरे 5 साल तक चलाया और 1996 के लोकसभा चुनाव में हार के साथ उनका कार्यकाल खत्म हुआ. दिसंबर 2004 में दिल्ली के एम्स अस्पताल में नरसिम्हा राव का 83 साल की उम्र में निधन हो गया.
 
 
 
 
 
 
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