पंचकूला । अग्रजन पत्रिका से इंद्रा गुप्ता- भगवान श्री राम भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों के सबसे बड़े आधार स्तंभ है। श्री राम भारतीय जन-जीवन में इतने गहरे रमे और गुंथे हुए हैं कि उनके बिना हमारे यहां कोई भी कार्य अधूरा रह जाता है। अभिवादन से लेकर अंतिम यात्रा तक श्री राम का नाम हम भारतीयों के साथ-साथ चलता है। हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह चौहान ने रामनवमी के उपलक्ष्य में आयोजित ऑनलाइन कवि गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए यह टिप्पणी की। ग्रामोदय अभियान और हरियाणा ग्रंथ अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस अनूठे साहित्यिक समारोह में हरियाणा के विभिन्न हिस्सों से कवियों- कवत्रियों ने प्रभु श्री राम को समर्पित अपनी रचनाओं का पाठ किया। कोरोना के कारण लॉक डाउन के चलते कविगण वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से ग्रामोदय के प्लेटफार्म पर एक दूसरे के साथ जुड़े और सोशल मीडिया के अलग-अलग मंचों पर कविता के रसिक लोगों ने उनके साथ जुड़कर काव्य पाठ का आनंद लिया।
अपनी हरियाणवी कविता के कुछ अंश डॉ चौहान ने यूं पढ़ें :
जिसके मन म्हें नाम राम का नहीं रहै
माणस म्हारे किसे काम का नहीं रहै
कवयित्रि प्रतिभा माही ने कण-कण व्यापी राम को अपनी वाने से कुछ इस प्रकार प्रगट किया -
मन में राम तन में राम, मेरी तो रग-रग में राम
तुम में राम सब में राम, जग के तो कण-कण में राम
हे राम चले आओ कैसा ये नज़ारा है
अब तेरे सिवा कोई दूजा न हमारा है
कोरोना से बचाने की प्रार्थना समेटे हुए कवयित्री नीलम त्रिखा ने राम को याद करते हुए कहा की -
राम इतना बता दीजिए
तुम्हें ढूंढे तो ढूंढे कहां
अपना पता बता दीजिए
कोरोना से बचा लीजिए रोज आती थी द्वारे तेरे
अब तो मंदिरों पर है ताले पड़े
कभी मेरे घर की भी राह लीजिए
राम इतना बता दीजिए
सीता को समर्पित अपनी काव्य रचना में कवयित्री मनजीत कौर तुर्का कहा कि -
सीता पहले भी कमजोर नहीं थी,
सीता आज भी कमजोर नहीं है ।
सीता ने पहले भी अपना ओर अपने बच्चों का ख़्याल रखा था ।
सीता आज भी अपना ओर अपने बच्चों का ख़्याल रख सकती है ।
सब खुश रहे मेरे राम बस ये दुआ करती है ।
असंध के जाने माने कवि भारत भूषण ने अपनी चिर परिचित शैली में बड़ी ही ओजपूर्ण वाणी में प्रभु राम को स्मरण किया -
असुर-संहारक राम प्रभु
नवशक्ति का संचार करो ।
सूर्यवंशी-रघुकुल-भूषण
भारत का उद्धार करो ।।
कवयित्री सविता गर्ग "सावी" ने अपने काव्य पाठ से प्रेममय राम का स्मरण कर सबका मन पुलकित कर दिया -
राम का नाम जब मेरे होंठों पर आता है
आत्मा तृप्त हो जाती है मन पुलकित हो जाता है
राम को पुनः आने को पुकारती कवयित्री सुनीता राणा अपनी इच्छा और उलाहना कुछ यूं प्रकट की -
राम तुम्हे लौटना होगा,
मुझे तुम्हारी कमी खलती है,
तुम्हारे युग में, जीना चाहती हूं,
जीवन के रस को पीना चाहती हूं,
हां,तुम्हे एक वादा करना होगा,
मां सीता की अग्नि परीक्षा अब नहीं होगी
भगवान् श्री राम की सार्वभौमिकता को समर्पित काव्य रचना को पड़ते हुए कवयित्री राशि श्रीवास्तव ने कहा -
मर्यादा पुरुषोत्तम राम हैं, हम सबके वो भगवान हैं
उनके बिन हम अधूरे सभी, उनसे ही चलता हर काम है I
बड़े ही सरल शब्दों में कवयित्री शिवानी दीक्षित ने राम के प्रति जन-जन के मन में बसे भावों को प्रगट किया
रामजी हर शख्स में समाए हैं..
संकट में हमने उनको आजमाएं हैं
राम प्रतिमा नहीं साक्षात भगवान हैं....
राम आस्था हैं राम ही राम है...
जिसके मन में बसे हो राम ..
राम के मार्धुय को अपनी रचना में समेटे हुए कवयित्री सीमा गुप्ता ने अत्यंत सुन्दर रचना प्रस्तुत की -
फूलों की कोमलता, माधुर्य,
मोगरे की खुश्बू,
गुलाब सा रंग,
कितना रस है
तुम्हारे नाम में राम
कवयित्री रजनी राणा ने दुःख हर्ता राम का गुणगान बड़े ही सुमुधर स्वर में किया -
राम- एक शब्द ही काफी हैं आनंद में डूब जाने को,
राम - एक अनुभूति हैं हर दुःख को भूल जाने को,
राम नाम कहने को बस दो अक्षर का सार हैं,
लेकिन ये हमारे अस्तित्व का आधार हैं।
-रजनी राणा
बिगड़ते मानव को पुनः धर्म की राह पर लाने हेतु कवयित्री अरुणा ने राम का पुनः आने हेतु आह्वान किया -
अब तो आना ही होगा
महापुरुष राम को
इस संसार को बचाने
धर्म का सार सिखाने
ताकि लोग अपनी संस्कृति
के पथ पर लौट आएं
अब तो आना ही होगा
महापुरुष राम को
अब तो आना ही होगा
कवयित्री शीला गहलावत सीरत ने भगवान् राम के स्मरण के साथ साथ लोगों को घर में रहने की सीख देते हुए हरियाणवी शैली में काव्य पाठ किया -
सुन री दादी सुन री ताई
परहेज कर लै नै,जाण प्यारी सै
फेर पछतावैगी, जाण हाथ तै जावैगी
तू कर ले काम घर मं भतेरे सै
अपनी काव्य रचना में डॉ. किरण जैन ने कौशल्या नंदन राम से धरा पर पुनः शान्ति जल बरसाने की प्रार्थना की -
जीवन की सुलग रही चिंगारी
व्यथा पड़ी जीवन में भारी
इस व्याकुल धरती पर फिर
शांति जल बरसा दो
इस दुखी जगत को प्रभु
फिर हर्षा दो
पर दुख से आंचल भरने वाले
वीतराग स्वार्थ की नदी से पार उतरने वाले
है यही प्रार्थना मेरी
कोशल्या नंदन स्वीकार करो
मानस में पीड़ा समस्त है
मेरे मानस के अभिनंदन
रुद्र कंठ है रिक्त हस्त है