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Chandigarh

नवरात्रि में हर महिला को करने चाहिए 16 श्रृंगार,, कन्या पूजन अष्टमी को नहीं नवमी को करना चाहिए क्योंकि देवी नौ हैं आठ नहीं आओ जानें*

March 31, 2020 09:58 PM
*नवरात्रि में हर महिला को करने चाहिए 16 श्रृंगार,, कन्या पूजन अष्टमी को नहीं नवमी को करना चाहिए क्योंकि देवी नौ हैं आठ नहीं आओ जानें*
 
चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा के भक्त मां के 9 स्वरूपों की पूजा करके उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश में लगे रहते हैं। नवरात्रि में मां दुर्गा के सोलह श्रृंगार करने का भी विशेष महत्व बताया जाता है। इतना ही नहीं इस खास मौके पर घर की बड़ी बुजुर्ग महिलाएं अपनी बहुओं को 16 श्रृंगार करके रहने की सलाह देते हुई नजर आती हैं। पर क्या आप जानते हैं आखिर क्या है इसके पीछे छिपी खास वजह। अगर नहीं तो आओ जानें आखिर कौन से हैं वो 16 श्रृंगार जिसे करने से माता रानी अपने भक्तों पर प्रसन्न होती हैं। 
 
लाल जोड़ा-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां दुर्गा को लाल रंग बेहद पसंद है। यही वजह है कि माता को प्रसन्न करने के लिए नवरात्रि के दौरान लाल रंग के कपड़े पहनकर पूजा करने की सलाह दी जाती है। 
 
बिंदी-
महिलाओं के माथे पर बिंदी या कुमकुम लगा हुआ शुभ माना जाता है। माथे पर लगा कुमकुम हर महिला के लिए उसके सुहाग की निशानी माना जाता है।नवरात्रि के दौरान सुहागिन स्त्रियों को कुमकुम या सिंदूर से अपने ललाट पर लाल बिंदी जरूर लगानी चाहिए। 
 
मेहंदी-
किसी भी सुहागन स्त्री का श्रृंगार मेहंदी लगे बिना अधूरा ही रहता है। घर में किसी भी शुभ काम के दौरान महिलाएं हाथों और पैरों मे मेहंदी जरूर रचाती हैं। माना जाता है कि नववधू के हाथों में मेहंदी जितनी गाढ़ी रचती है, उसका पति उसे उतना ही अधिक प्रेम करता है। मेहंदी को सुहाग का प्रतीक माना जाता है। 
 
सिंदूर
सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि सिंदूर लगाने से पति की आयु लंबी होती है।
 
गजरा-
मां दुर्गा को मोगरे का गजरा बहुत प्रिय है। बालों की सुंदरता बढ़ाने और मां को प्रसन्न करने के लिए आप जूड़ा बनाकर उस पर गजरा लगा सकती हैं। 
 
काजल-
कहा जाता है किसी भी स्त्री के चेहरे की सबसे खूबसूरत चीज और उसके मन का आइना उसकी आंखें होती हैं। जिनका श्रृंगार होता है काजल। इसे महिलाएं अपनी आंखों की सुंदरता बढ़ाने के लिए लगाती हैं। इसके अलावा काजल बुरी नजर से भी आपको बचाए रखता है।
 
मांग टीका-
माथे के बीचों-बीच पहने जाने वाला यह आभूषण सिंदूर के साथ मिलकर हर लड़की की सुंदरता में चार चांद लगा देता है। ऐसा माना जाता है कि नववधू को मांग टीका सिर के बीचों-बीच इसलिए पहनाया जाता है ताकि वह शादी के बाद हमेशा अपने जीवन में सही और सीधे रास्ते पर चले।
 
चूड़ियां-
चूड़ियां सुहाग का प्रतीक मानी जाती हैं। ऐसा माना जात है कि सुहागिन स्त्रियों की कलाइयां चूड़ियों से भरी हानी चाहिए। ध्यान रखें चूड़ियों के रंगों का भी विशेष महत्व है। लाल रंग की चूड़ियां इस बात का प्रतीक होती हैं कि विवाह के बाद वह पूरी तरह खुश और संतुष्ट है। हरा रंग शादी के बाद उसके परिवार के समृद्धि का प्रतीक है।
 
नथ-
सुहागिन स्त्रियों के लिए नाक में आभूषण पहनना अनिर्वाय माना जाता है। आम तौर पर स्त्रियां नाक में छोटी नोजपिन पहनती हैं, जिसे लौंग कहा जाता है। नाक में नथ या लौंग उसके सुहाग की निशानी मानी जाती है।
 
बाजूबंद-
कड़े के सामान आकृति वाला यह आभूषण सोने या चांदी का होता है। यह बाहों में पूरी तरह कसा जाता है। इसलिए इसे बाजूबंद कहा जाता है। पहले सुहागिन स्त्रियों को हमेशा बाजूबंद पहने रहना अनिवार्य माना जाता था। ऐसी मान्यता है कि स्त्रियों को बाजूबंद पहनने से परिवार के धन की रक्षा होती है।
 
कानों में झुमके
कान में पहने जाने वाला यह आभूषण चेहरे की सुंदरता को बढ़ाने का काम करता है। इसे पहनने से महिलाओं का चेहरा खिल उठता है। मान्यता है कि विवाह के बाद बहू को खासतौर से पति और ससुराल वालों की बुराई करने और सुनने से दूर रहना चाहिए।
 
अंगूठी
शादी के पहले मंगनी या सगाई के रस्म में वर-वधू द्वारा एक-दूसरे को अंगूठी को सदियों से पति-पत्नी के आपसी प्यार और विश्वास का प्रतीक माना जाता रहा है। हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथ रामायण में भी इस बात का उल्लेख मिलता है। सीता का हरण करके रावण ने जब सीता को अशोक वाटिका में कैद कर रखा था तब भगवान श्रीराम ने हनुमानजी के माध्यम से सीता जी को अपना संदेश भेजा था। तब स्मृति चिन्ह के रूप में उन्होंनें अपनी अंगूठी हनुमान जी को दी थी।
 
मंगल सूत्र
शादीशुदा महिला का सबसे खास और पवित्र गहना मंगल सूत्र माना जाता है। इसके काले मोती महिलाओं को बुरी नजर से बचाते हैं।
 
पायल
पैरों में पहने जाने वाले आभूषण हमेशा सिर्फ चांदी से ही बने होते हैं। हिंदू धर्म में सोना को पवित्र धातु का स्थान प्राप्त है, जिससे बने मुकुट देवी-देवता धारण करते हैं और ऐसी मान्यता है कि पैरों में सोना पहनने से धन की देवी-लक्ष्मी का अपमान होता है।
 
कमरबंद
कमरबंद कमर में पहना जाने वाला आभूषण है, जिसे स्त्रियां विवाह के बाद पहनती हैं, जिसमें नववधू चाबियों का गुच्छा अपनी कमर में लटकाकर रखती है। कमरबंद इस बात का प्रतीक है कि सुहागन अब अपने घर की स्वामिनी है।
 
बिछुआ
पैरों के अंगूठे और छोटी अंगुली को छोड़कर बीच की तीन अंगुलियों में चांदी का बिछुआ पहना जाता है। शादी में फेरों के वक्त लड़की जब सिलबट्टे पर पैर रखती है, तो उसकी भाभी उसके पैरों में बिछुआ पहनाती है। यह रस्म इस बात का प्रतीक है कि दुल्हन शादी के बाद आने वाली सभी समस्याओं का हिम्मत के साथ मुकाबला करेगी।
 
 
*नवमी के दिन ही कन्या(कंजक) पूजन करना चाहिए*
 
क्या आप जानते हैं कन्या पूजन के लिए नवमी तिथि ही क्यों इतना महत्वपूर्ण माना गया है.
  
नवमी पर कन्या पूजन विधि
अष्टमी पर कन्याओं को भोजन कराने का महत्व और इसके नियम क्या हैं?
नवरात्रि की नवमी तिथि को कन्याओं को भोजन करने की परंपरा है. क्या आप जानते हैं कन्या पूजन के लिए नवमी  तिथि ही क्यों इतना महत्वपूर्ण माना गया है. कुछ लोग अष्टमी की बजाय नवमी पर कन्या पूजन के बाद उन्हें भोजन कराते हैं. आओ जानें नवमी पर कन्याओं को भोजन कराने का महत्व और इसके नियम क्या हैं.
 
नवमी पर कन्याओं को भोजन कराने के नियम
 
- नवरात्रि केवल व्रत और उपवास का पर्व नहीं है
 
- यह नारी शक्ति के और कन्याओं के सम्मान का भी पर्व है
 
- इसलिए नवरात्रि में कुंवारी कन्याओं को पूजने और भोजन कराने की परंपरा भी है
 
-नवरात्रि में हर दिन कन्याओं के पूजा की परंपरा है, लेकिन नवरात्रों की नवमी को अवश्य ही पूजा की जाती है
 
- 2 वर्ष से लेकर 11 वर्ष तक की कन्या की पूजा का विधान किया गया है.
 
कन्या पूजन की विधि
 
- एक दिन पूर्व ही कन्‍याओं को उनके घर जाकर निमंत्रण दें.
 
- गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा से स्वागत करें और नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाएं.
 
- अब इन कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाएं.
 
- सभी के पैरों को दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से उनके पैर स्‍वच्‍छ पानी से धोएं.
 
- उसके बाद कन्‍याओं के माथे पर अक्षत, फूल या कुंकुम लगाएं.
 
- फिर मां भगवती का ध्यान करके इन देवी रूपी कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं.
 
- भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्‍य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और उनके पुनः पैर छूकर आशीष लें.
 
कितनी हो कन्याओं की उम्र?
कन्याओं की आयु 2 वर्ष से ऊपर तथा 10 वर्ष तक होनी चाहिए. इनकी संख्या कम से कम 9 तो होनी ही चाहिए. इनके साथ एक बालक को बिठाने का भी प्रावधान है. इस बालक को भैरो बाबा के रूप में कन्याओं के बीच बैठाया जाता है!! 
 
घर में रहकर कन्या पूजन कर सकते हैं
 
*नोट*: 
 
*अपने घर में ज्योति जगाकर माँ भगवती जी का पूजन करें और कंजक पूजन के निमित्त अपनी श्रद्धानुसार दक्षिणा रखकर अपने घर के मंदिर में रख दे, कोरोना वायरस के चलते लौकडाउन के बाद ही घर में रखी दक्षिणा को कन्याओं को दान करें,, नवमी पर अपने घर से बाहर नहीं निकलें*
 
*धर्म ज्ञान चर्चा के लिए मुझे सम्पर्क कर सकते हैं*
 
 
 
 
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