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Haryana

कंवर साहेब महाराज ने सिवानी राधास्वामीआश्रम में सत्संग वचन किए

February 09, 2020 08:15 PM
कंवर साहेब महाराज ने सिवानी राधास्वामीआश्रम में सत्संग वचन किए
 
 सिवानी मंडी
कंवर साहेब ने कहा सन्तो का वचन कभी पुराना नही होता।सन्त चाहे किसी काल मे आये हों और किसी कुल में जन्म लिया हो उनका जीवन और उनकी शिक्षाएं इस काल जाल से बचने के लिए और जीवन का असल उद्देस्य प्राप्त करने के लिए होती हैं।सन्त रविदास जी का जीवन भी इस बात का द्योतक है कि भक्ति किसी कुल जाती या वर्ण की मोहताज नही होती।जब सन्त सतगुरु महात्मा इस धरा पर आते हैं तो तीन ताप से दुखी जीवो को बड़ी शांति मिलती है।इन्ही सन्त महापुरुषों में एक थे सन्त शिरोमणि रविदास जी जिनका आज संसार अवतरण दिवस मना रहा है।यह अमृत वचन परमसंत सतगुरु हुजूर कँवर साहेब जी रविदास जयंती पर आयोजित सत्संग में उमड़ी साध संगत को फरमाए।सत्संग का आयोजन सिवानी के तोशाम रोड़ पर स्थित राधास्वामी आश्रम में किया गया।गुरु महाराज जी ने कहा कि यदि सिप का मोती चाहते हो तो समुंदर में डुबकी लगानी पड़ेगी।इसी प्रकार यदि भक्ति रूपी मोती पाना चाहते हो तो सतगुरु रूपी समुंदर में गोता लगाना ही पड़ेगा क्योंकि सन्तो की वाणी की यही खूबी होती है की उनकी वाणी को जब भी हम सुनते हैं हर बार उनका अलग ही सार और उद्देश्य निकल कर आता है।
हुजूर कँवर साहेब जी ने फरमाया कि सन्तो के दर्शन तो आसोज की बारिश जैसे हैं।जैसे आसोज के महीने की बारिश साढी और सावनी दोनों फसलों को लाभ देती है उसी प्रकार सन्तो के दर्शन से आपका जगत भी कल्याणकारी बनता है और अगत भी सुखदायक बनता है।उन्होंने कहा कि जब भी आपको कोई दुख तकलीफ हो तभी आप सन्तो की वाणी का मनन और चिंतन किया करो आपकी दुख तकलीफ परेशानी पल भर में छूमंतर हो जाएगी।हुजूर महाराज जी ने कहा कि अपनी शक्ति को जब आप ध्यान बिंदु पर केंद्रित कर लोगे तभी आप त्रिकाल दर्शी हो जाओगे।सन्त रविदास जी ने भी यही रुका लगाया था कि जो चीज आप काबे और कैलाश में ढूंढने जाते हो वह तो आपके अंदर है।यही परमसंत ताराचंद जी ने भी कहा कि बाहर का सारा झगड़ा झूठा है आप अपने अंदर झांक कर देखो आपके घट भीतर एक अनूठा खेल चल रहा है।बाहर की चीजो को देख कर दीवाना मत होना।लेकिन इस सार को हम तभी समझ पाएंगे जब हम कुल वर्ण जाती पाती के झगड़े से उभर पाएंगे।रविदास जी ऐसे समय में इस धरा पर अवतरित हुए जिस समय जाति पाति का बोलबाला था।रविदास जी का बहुत विरोध हुआ कि आप नीची जाति में पैदा होकर परमात्मा की भक्ति नही कर सकते।लेकिन रविदास जी ने अपनी लग्न और धुन से तप और त्याग का वो नमूना प्रस्तुत किया कि इस जगत ने माना कि भक्ति तो चौगान की गेंद की भांति है इसे कोई भी अपनी काबिलियत से ले जा सकता है।सन्त महात्मा किसी जाति विशेष के नही होते वो तो जीवो का कल्याण करने इस जगत में आते हैं।
भक्ति तो केवल श्रद्धा और विश्वास की है।गुरु महाराज जी ने फरमाया कि यदि आपका अन्न पवित्र है तो ही मन पवित्र होगा।उन्होंने कहा कि इंसान अपनी अक्ल का गुलाम होकर लुटा फिरता है।कभी माया के झमेले में तो कभी दूसरे झगडो में आप अपना जीवन ख्वार क्यों करते हो।किसलिए झूठ और कपट कमाते हो।जिसने जन्म दिया है वो आपके पेट की भी चिंता करेगा।गुरु महाराज जी ने सन्त रविदास जी के जीवन का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि रविदास जी के बारे में यह किवंदती है कि वो पूर्व जन्म में भी रामानंद जी के शिष्य थे।एक बार जब वो भिक्षा लेने जा रहे थे तो बारिस के कीचड़ के कारण उनका पैर फिसल गया।वहीं पर एक धनाढ्य व्यक्ति का मकान था।वो गरीबों का खून चूसता था।उसकी करनी और रहनी अच्छी नही थी।उस धनवान ने रविदास जी को कहा कि आपके पैर में चोट लगी है ऐसे में आप चल नहीं पाओगे इसलिए आप आज यहीं से भिक्षा ले जाओ।जब रामानन्द जी को ये बात पता चली तो उन्होंने रविदास जी को कहा कि तुमने गलत काम किया है इसलिए तुझे अगला जन्म किसी नीची जाति में मिलेगा।सन्त वचन के कारण ही उनका अगला जन्म हरिजन जाति में हुआ।लेकिन सन्तो की हर बात निराली होती है।केवल उनकी मौज ही जानती है कि किस विध कोन से जीव से क्या काम लेना है।रविदास जी ने भी उस जाति में जन्म लेकर जीव चेताने का ही काम किया क्योंकि उन दिनों जाती पाती का बोलबाला था।जगत को यह सन्देश देने के लिए कि भक्ति किसी जाति की मोहताज नही है उन्होंने इस जाति में भी कोटि जीवो का जीवन सुधारने का सत्कार्य किया।गुरु महाराज जी ने फरमाया कि अगले जन्म में जब रविदास जी ने जन्म लिया तो उन्होंने कई दिनों तक मां का दूध नही पिया।जब रामानंद जी ने उन्हें दर्शन देकर कहा कि अब तेरा कर्म कट गया है दूध पी ले।तब रामानन्द जी ने दूध का पान किया और इस जन्म में भी उन्होंने रामानन्द जी को ही अपना गुरु बनाया।उनका पूरा जीवन प्रभु भक्ति की जीवंत मिसाल बनी।रविदास जी मानते है कि मनुष्य का चोला हीरे के समान है।इसका एक एक सांस लाख लाख मोल का है।आज इंसान अपनी गफलत में अपनी अनमोल पूंजी व्यर्थ में गंवा रहा है।गुरु महाराज जी ने कहा कि सन्त महात्माओं के दर्शन भर से बला टल जाती है।सूली की सजा शूल के दर्द मात्र से कट जाती है।
हुजूर कँवर साहेब जी ने फरमाया कि प्रभु की भक्ति के लिए,भजन बनाने के लिए आप मेहनत की खाओ।सभी सन्तो ने इसीलिये कमा कर खाया।अपने हक हलाल की कमाई खा कर ही सन्त महात्माओं ने संसार को सत कमाई दी।परमात्मा के दरबार में जन्म जात नहीं पूछी जाती।वहां तो केवल भक्ति की कमाई चलती है।उन्होंने कहा कि कर्म को सुधारो क्योंकि कर्म अच्छे होंगे तभी मन अच्छा होगा।मन चंगा तो कठौती में गंगा।यह वाणी भी रविदास जी की है।एक साधु महात्मा ने रविदास जी को गंगा स्नान  के लिए कहा लेकिन रविदास जी ने उसे एक टका देते हुए कहा कि तुम ही मेरी तरफ से ये गंगा में चढ़ा देना लेकिन केवल तब जब गंगा मैंया स्वयं प्रकट होकर इस टके को ले।साधु मन ही मन उपहास उड़ाते हुए हंसने लगा लेकिन गंगा स्नान के समय साधु को लगा कि जैसा रविदास ने कहा था मैं वैसा ही कर देता हूँ।गंगा का आह्वान करते ही गंगा प्रकट हो गयी और उस महात्मा को  एक कंगन देते हुए कहा कि ये रविदास को दे देना।महात्मा के मन में लालच आ गया।उसने वो कंगन रविदास को ना देकर उसे राजा को दे दिया।राजा ने जब रानी को वो कंगन दिया तो रानी ने कहा कि मुझे ऐसा ही कंगन एक और चाहिए।अब महात्मा मुसीबत में पड़ गया।वो भागा भागा रविदास जी के पास आया और अपनी जान की दुहाई दी।रविदास जी ने अपनी कठौती में डाला और वैसा ही दूसरा कंगन महात्मा को दे दिया।महात्मा ने हैरानी से रविदास जी को देखा तब रविदास जी ने कहा था कि मन चंगा तो कठौती में गंगा।गुरु महाराज जी ने कहा कि सन्तो के दिल में दया होती है।उनका हृदय मक्खन के समान होता है।सन्त कहते ही उनको हैं जो सत में समा गया हो।सन्त खुद कष्ट सह लेंगे लेकिन वो किसी को तकलीफ नहीं देते।पलटू साहेब,कबीर साहेब,नानक दादू सब को कितने कष्ट दिए गए लेकिन उन्होंने परमात्मा से सबका भला ही मांगा लेकिन इस बात का ध्यान रखना कि राजा साधु अग्नि और जल से कम ही प्रीत अच्छी होती है इसलिए इन से डर कर ही रहना चाहिए।हुजूर महाराज जी ने कहा कि इंसान का चोला मिला है तो किसी महात्मा की शरण में जाकर अपने मन को पवित्र करो।जिसके विचार पवित्र हैं,चरित्र उच्च है वो बादशाहों का भी बादशाह है।मन पवित्र होगा नाम से।सन्त महात्मा की शरण में जाकर अरदास करो कि वो आपको वो रूहानी दौलत दे दे जो सब सुखों से ऊपर है।उन्होंने कहा कि आपकी ताकत को चाहे वो धन की है,बल की है या मन की है उसे सत्कार्य में लगाओ।जिस प्रकार नाव में यदि पानी बढ़ जाता है तो उसके डूबने का खतरा बढ़ जाता है उसी प्रकार इंसान के पास यदि बल और धन बढ़ जाता है तो उस पर भी भटकाव का खतरा मंडराने लगता है।उन्होंने कहा कि गुरु की शरणाई लेकर अपने धन को दान में लगाओ।अपने आप को गुणवान बनाओ क्योंकि गुणहीन की पूजा व्यर्थ है।गुरु महाराज जी ने कहा कि आपके अंदर वो ताकत आज भी है जिस ताकत का गुणगान हम युगो से करते आ रहे हैं लेकिन वो उजागर तभी होगी जब मन में सच्चाई पैदा कर लोगे।ये जगत जुए का खेल है।जो चतुर है वो अपने जीवन रूपी दौलत को लाखो गुना कर ले जाएगा लेकिन मूर्ख अपना सब कुछ यही लुटा कर जाएगा।उन्होंने कहा कि वहीं काटोगे जो बो कर जाओगे।इस संसार में सकल पदार्थ हैं लेकिन कर्महीन इंसानो को कुछ नहीं मिलता।जिस शरीर से इतना प्यार करते हो उस शरीर से प्राण निकलते ही आपके यार प्यारे ही जल्दी जलाने की कहने लगते हैं।
 
 
 
 
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