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Chandigarh

बच्चों को बर्बाद कर रही है ‘ठेके खोलो, स्कूल बंद करो’ की पॉलिसी- भूपेंद्र सिंह हुड्डा

February 04, 2020 07:31 PM
चंडीगढ़ 4 फरवरी-- अग्रजन पत्रिका से इंद्रा गुप्ता-
पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने युवाओं के साथ बच्चों में नशे के बढ़ते चलन पर गहरी चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि पहले एनसीआरबी और अब रोहतक पीजीआई के आंकड़े परेशानी बढ़ाने वाले हैं। पीजीआई की रिपोर्ट में ख़ुलासा हुआ है कि 4 साल के दौरान नशे के आदि स्कूली बच्चों की तादाद में 12 गुणा बढ़ोत्तरी हुई है। पीजीआई में हुई एक स्टडी के मुताबिक 2016 में 18 नशे के आदि बच्चे इलाज के लिए आए थे, जिनकी उम्र 14 से 19 साल के बीच थी। लेकिन 2019 के आख़रि तक ये आंकड़ा बढ़कर 209 हो गया। करीब 12 गुणा की ये बढ़ोत्तरी पूरे हरियाणा को परेशान करने वाली है। 
20 से 25 साल की उम्र के युवाओं में बढ़ती नशे की लत का भी रिपोर्ट में जि़क्र है। पीजीआई में साल 2016 के दौरान इलाज के लिए 267 युवा आए। 2019 तक ये आंकड़ा बढ़कर 451 हो गया। 
भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि ये तो सिर्फ़ वो मामले हैं जो पीजीआई तक पहुंचे हैं। क्योंकि पीजीआई तक अति गंभीर मामले ही पहुंच पाते हैं। अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि अन्य अस्पतालों और नशा मुक्ति केंद्रों में पहुंचने वाले बच्चों और युवाओं की तादाद इससे कहीं ज़्यादा होगी। उससे भी बड़ी तादाद उन लोगों की होगी, जो ऐसी लत का इलाज ही नहीं करवाते। 
नेता प्रतिपक्ष ने हाल ही में आई राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) का भी हवाला दिया। इसके मुताबिक हरियाणा नशे की वजह से मौत के मामले में पंजाब को भी पीछे छोड़ चुका है। साल 2018 के दौरान हरियाणा में एनडीपीएस के 2,587 मामले सामने आए जो उत्तर भारत में सबसे ज्यादा है। हरियाणा में नशे से 86 लोगों की मौत हुई जबकि पंजाब में इससे कम 78 मौतें हुई। इसी तरह नकली शराब पीने से 162 लोगों की मौत हुई थी। 
हालात कितने ख़तरनाक हो चुके हैं, इसका अंदाज़ा सिरसा जिले की रिपोर्ट से भी लगाया जा सकता है। वहां के जिला स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक साल 2014 के दौरान 1,405 ड्रग एडिक्ट इलाज के लिए आए थे। लेकिन 2018 में ये संख्या बढ़कर 18,551 हो गई थी। ये सीधे तौर पर 13 गुणा की बढ़ोत्तरी है। इससे भी ख़तरनाक बात ये है कि ड्रग एडिक्ट्स में पहले 25 से 30 साल की उम्र के युवा ज्यादा होते थे लेकिन अब 15-20 साल के किशोरों की तादाद ज्यादा होती है। उन्होंने कहा कि सिरसा समेत हरियाणा के कई जि़लों में चिट्टे का कारोबार चरम पर है। ख़ुद सरकार का मानना है कि सिरसा के साथ पंजाब से लगते फतेहाबाद, कैथल और अंबाला जि़ले में ऐसा नशा बिक रह है। कई जगह ख़ुद बीजेपी के नेताओं पर ही नशे के कारोबार में संलिप्तता के आरोप लगे हैं।    
पूर्व मुख्यमंत्री ने प्रदेश में बढ़ते नशे के चलन और कारोबार के लिए सरकार की नीयत और नीति को जि़म्मेदार ठहराया है। उनका कहना है कि सरकार की नीति ‘ठेके खोलो और स्कूल बंद करो’ वाली है। इन्हीं विनाशकारी नीतियों की बदौलत प्रदेश के युवा बेरोज़गारी के चलते और स्कूली बच्चे बेहतर शिक्षा नहीं मिलने की वजह से नशे के आगोश में समा रहे हैं। कांग्रेस सरकार के दौरान प्रति व्यक्ति आय और प्रति व्यक्ति निवेश के पैमाने पर नंबर वन रहा हरियाणा अब अपराध, बेरोज़गारी और नशे में नंबर वन बन गया है। सरकार के मंत्री नशे के कारोबारियों से लड़ने की बजाए किसकी कुर्सी कहां लगे इसी लड़ाई में व्यस्त हैं। सरकार युवाओं को नशे से बचाने के लिए कोई नई नीति बनाने की बजाए कांग्रेस सरकार में शुरू हुई योजनाओं को भी बंद कर रही है। 
भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने युवाओं और बच्चों का रुझान खेलों की तरफ करने के लिए गांव-गांव में स्टेडियम बनवाए थे। लेकिन बीजेपी सरकार ने वहां स्टाफ़ देना तो दूर, उनकी साफ-सफाई तक नहीं करवाई। कांग्रेस सरकार ने स्कूली बच्चों में खेलों को बढ़ावा देने के लिए स्पैट शुरू करवाया था, लेकिन बीजेपी सरकार ने उसे भी बंद कर दिया। कांग्रेस सरकार ने ‘पदक लाओ, पद पाओ’ की पॉलिसी बनाई, जिससे खेलों और खिलाडि़यों को बढ़ावा मिला। हरियाणा विश्व में स्पोर्ट्स हब के तौर पर उभर रहा था। लेकिन बीजेपी ने उस नीति में छेड़छाड़ करके युवा प्रतिभाओं को उनके हक़ों से वंचित किया। कांग्रेस सरकार ने डिस्ट्रिक्ट, स्टेट और नेशनल लेवल के खिलाडि़यों को फ़ायदा पहुंचाने के लिए कई योजनाएं चलाई थी। लेकिन बीजेपी सरकार ने उन्हें योजनाओं का लाभ देने तो दूर, हर साल होने वाले उनके सम्मान समारोह तक को बंद कर दिया। 
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि नशे के मुद्दे पर विधानसभा सत्र के दौरान सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी। विपक्ष इतनी गंभीर समस्या के प्रति सरकार की अनदेखी बर्दाश्त नहीं करेगा। उन्होंने अभिभावकों से भी आह्वान किया कि वो अपने बच्चों की गतिवीधियों और व्यवहार के प्रति सचेत रहें। क्योंकि ऐसी बीमारी से लड़ने के लिए सामाजिक चेतना बड़ी भूमिका निभा सकती है।
 
 
 
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