सेवा में,
श्री नरेन्द्र मोदी
सम्माननीय प्रधनमंत्राी, भारत सरकार
साउथ ब्लॉक रायसीना हिल्स
नई दिल्ली -110011
विषय -: जीएसटी के सम्बन्ध् में उद्योग एंव व्यापार को होने वाली कठिनाईयो को लेकर नगर व्यापार मडंल ने प्रधानमंत्री के नाम का ज्ञापन उपायुक्त महोदय के माध्यम से भेजा
महोदय जीएसटी को लगे हुए इस समय 29 माह से अधिक का समय हो चुका है और भारत के उद्योग और व्यापार ने इसके सफलता पूर्वक संचालन में अपना भरपूर योगदान दिया है लेकिन चूँकि जीएसटी का नया कर एंव विषय है इसलिए अभी इसमें और भी सरलीकरण और सुधार की आवश्यकता है इसलिए हम भारत के समस्त व्यापार एंव उद्योग जगत की और से आपको निम्न सुझाव दे रहें है:-
1. महोदय, सबसे पहले इनपुट क्रेडिट के लिए जो 10 प्रतिशत का प्रावधान लाया गया है इसे तुरंत स्थगित किया जाए और एक बार इस विषय में अच्छी तरह से तैयारी की जाए। इस प्रावधान में जो मासिक समय सीमा तय की गई है वह अव्यवहारिक है और इस सम्बन्ध में समय सीमा को फिर से तय की जाए जो कि कम से कम 3 से 6 माह हो। देखिये कोई विक्रेता अपना रिटर्न समय पर भरे इसमें क्रेता का कोई नियंत्रण नहीं होता है और मासिक आधार पर इस संबंध में क्रेता की इनपुट रोक दी जाए इसका कोई औचित्य नहीं है। क्रेता को उचित समय दिया जाये ताकि वो अपने विक्रेता से संपर्क कर अपनी इनपुट क्रेडिट में आय मिसमैच को दुरूस्त कर सके।
यहाँ एक बात और ध्यान में रखें कि यदि इनपुट में मिसमैच रहता है तो अंत में यह रकम ब्याज सहित जमा होगी ही लेकिन उसी माह में उसे रोक कर खरीददार को यह सजा देने की इतनी जल्दी क्यों है और वह भी किसी दूसरे की गलती के लिए इस सब के लिए 3 से 6 माह का समय दिया जाए यही उचित होगा।
2. महोदय, जुलाई 2017 से जो भी मासिक रिटर्न 3B भरे गए है उनमें संशोधन की कोई सुविधा नहीं है और शायद
यही वो सबसे बड़ी गलती थी जिससे जीएसटी के प्रक्रियाओं को जटिल बनने की शुरूआत हो गई थी। एक माह में भरे हुए रिटर्न में हुई गलती को अगले या आने वाले रिटर्न में समायोजित कर ठीक किया जा सकता है और लेकिन ऐसा हर गलती के साथ हो सकता है।
यदि मासिक रिटर्न 3B में संशोधन नही हो सकता है तो व्यवहारिक रूप से वार्षिक रिटर्न कर निर्धारण में कोई योगदान नहीं दे पायेंगे और अधिकांश कर निर्धारण डीलर को नोटिस देने पर ही कर निर्धारण हो पायेंगे जो कि ना
तो एक आदर्श स्थिति है और ना ही विभाग के पास इतनी क्षमता है।
3. महोदय, RCM में से वह हिस्सा जिसका इनपुट क्रेडिट डीलर को मिल जाता है का कोई वित्तीय प्रभाव उसकी
कर देयता पर नहीं पड़ता है और प्रारम्भ से ही विशेषज्ञों द्वारा यह बताया गया था कि यह एक अव्यवहारिक प्रावधान
है और प्रारम्भिक जीएसटी के दौरान और अभी भी डीलर इसका सही से पालन नहीं कर पा रहें है।
यदि डीलर RCM के दायरे में तो आता है लेकिन इस सम्बन्ध में उसे कोई "अतिरिक्त कर" का भुगतान नहीं करना पड़ रहा है तो फिर यह एक अव्यवहारिक और अनुचित प्रक्रिया का बोझ उस पर डाला गया है अब यदि वह इस बिना परिणाम वाली तकनीकी प्रक्रिया को पूरा नहीं कर पाए तो उन्हें दण्डित करना भी सही नहीं है। इस प्रकार अर्थात बिना वित्तीय प्रभाव के RCM को 1 जुलाई 2017 से ही निरस्त कर देना चाहिए।
आइये इसे उदाहरण के माध्यम से समझने का प्रयास करें। एक डीलर को RCM के रूप में पचास हजार रूपये का भुगतान करना है जिसकी उसे इनपुट क्रेडिट भी मिल जायेगी। उस डीलर की कुल कर देयता RCM सहित पांच लाख रूपये है। अब यदि वह RCM का भुगतान करता है तो उसे अन्य कर के रूप में 4.50 लाख रूपये का भुगतान
करना है क्योंकि RCM के रूप में भुगतान किये गए 50 हजार रूपये की क्रेडिट उन्हें मिल जायेगी इस प्रकार इस डीलर द्वारा भुगतान किया गया कुल कर 5 लाख रूपये हुआ।
अब मान लीजिये यदि यह डीलर RCM का भुगतान नहीं करता है तो इस डीलर द्वारा जमा कराया गया तब भी इस डीलर द्वारा जमा कराया गया के 5 लाख ही होगा क्योंकि अब उसे RCM की इनपुट क्रेडिट नहीं मिलेगी।
इस तरह के जितने भी मामले है जिनमें रकम केवल एक तकनीकी मुद्दा है और इसका वित्तीय प्रभाव कुछ भी नहीं हैं वहां इसके जमा कराने में कोई भूल भी हुई है तो इसे माफ कर देना चाहिए क्योंकि जीएसटी की प्रारम्भिक अवस्था में इस तरह की भूल हो जाना स्वाभाविक है।
वेट में भी इसी तरह का प्रावधान "क्रय कर" के नाम से था लेकिन इस छूट के साथ कि यदि क्रेता ने अपने विक्रय पर कर चुका दिया तो क्रय कर का भुगतान नहीं करना होता था अगर यही जीएसटी और वेट का मूल भी है और इसी का जीएसटी में पालन नहीं हुआ है और इस नियम के कारण भी जटिलताएं बढ़ी है जिन्हें अब कम करने का समय आ गया है।
4. महोदय, जिन डीलर्स ने अपने रजिस्ट्रेशन सरेंडर किये थे उनमें से अधिकाँश के पास कोई कर दायित्व सरेंडर करते समय नहीं बचा था ना ही कोई स्टँाक बचा था लेकिन उन सभी को अपना सरेंडर कर प्रार्थना पत्र स्वीकार होने के 90 दिन के भीतर एक और फॉर्म GSTR.10 में भरना होता है जिसमें अधिकाँश मामलों में कुछ भी नहीं होता है और यह फॉर्म अधिकाँश मामलों में NIL ही होता है और यह फॉर्म नहीं भरने पर आप आश्चर्यचकित हो जायेंगे कि लेट फीस कितनी है - 200 रूपये प्रतिदिन जो कि अधिकत्तम रूपये 10000.00 तक हो सकती है।
इस फॉर्म के साथ समस्या क्या है ? पहला तो यह कि अधिकाँश मामलों में यह एक NIL फॉर्म होता है और दूसरा यह कि रजिस्ट्रेशन के सरेंडर का प्रार्थना पत्र के स्वीकार होने की कोई समय सीमा नहीं है कभी तो यह 15 दिन में स्वीकार हो जाता है और कभी-कभी 6 माह तक पेंडिंग रहता है तो इसके बाद के ळैज्त्.10 भरने में कई मामलों में चूक हो जाती है।
इस फॉर्म पर से या तो लेट फीस सरकार हटाये या जिस तरह से सरकार ने ITC-4 हटाया था इसे भी हटा ले या फिर उन डीलर्स के लिए इसे ऐच्छिक कर दें जिन्हें छप्स् ळैज्त्.10 भरना है। एक अच्छी व्यवस्था यह भी हो सकती है कि इन सभी डीलर्स को बिना लेट फीस के एक बार और मौका दिया जाना चाहिए कि वे अपना ळैज्त्.10 भर सके।
5. महोदय, ITC-4 एक ऐसा फॉर्म है जिसे बार-बार स्थगित किया गया था और कई स्थगन के बाद इसे प्रारम्भिक 2 साल के लिए हटाया गया था। यहाँ देखिये, जब दो साल में भी इस फॉर्म से जुड़ी समस्याएं हल नहीं हुई तो फिर आगे भी इसे जारी रखने का कोई औचित्य नही है।
6. महोदय, जीएसटी को सिर्फ "लेट फीस टैक्स" बनाने का कोई औचित्य नहीं है और जहाँ यह अव्यवहारिक और अनुचित है वहां इसे हटा लेना चाहिए जिससे डीलर्स का विश्वास भी बढेगा। यहाँ एक और मुद्दा भी है कि एक बार जीएसटी रिटन्र्स में जिन डीलर्स ने लेट फीस के साथ रिटर्न भर दिए थे बाद में सरकार ने जिन डीलर्स ने रिटर्न नहीं भरे थे उन्हें बिना लेट फीस के रिटर्न भरने की इजाजत दे दी थी और इस तरह जिन डीलर्स ने लेट फीस के साथ रिटर्न
भरे वे डीलर्स अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहें हैं। सरकार को उन डीलर्स की लेट फीस के बारे में भी फैसला कर उन्हें यह फीस लौटा देनी चाहिए। यह ना सिर्फ न्यायसंगत होगा बल्कि करदाताओं को जीएसटी कानून के प्रति विश्वास भी बढेगा।
इस समय जीएसटी स्वंय ही एक प्रयोगात्मक स्थिति में है और ऐसे में जब सरकार ही बार-बार इसे स्पष्टीकरण और परिवर्तन के जरिये चला रही है तो फिर इसका पालन कर रहे डीलर्स पर लेट फीस लगाने का कोई विशेष औचित्य नहीं है वह भी तब जब यह एक नया कर है
7. महोदय, जीएसटी की सबसे बड़ी समस्या यह है कि प्रारम्भिक रूप से इसकी प्रक्रियाओं का निर्माण इस प्रकार से किया गया था कि यह एक कर एकत्र करने वाला कर नहीं बल्कि कर चोरी रोकने वाला टैक्स बना दिया गया और
इस कारण यह जटिल से जटिल होता गया और प्रारम्भ में जो जटिलताएं पैदा हो गई वे अब सरकार के नरम रूख के बाद भी सुलझ नहीं पा रही है।
अब इसका हल यही है कि सरकार डीलर्स पर भरोसा रखते हुए कर की चोरी को सख्ती से रोके लेकिन इसके लिए प्रक्रियाओं को इतना जटिल नहीं बनाए कि जो डीलर्स कानून का पालन बराबर कर रहे है उनके लिए जटिलताएं बढ़ती जाए और कानून का पालन करना उनके लिए लगभग असम्भव हो जाए।
8. जीएसटी नेटवर्क प्रारम्भ से ही डीलर्स की संख्या को देखते हुए इनके बोझ को उठा नहीं पाया है ।जीएसटी नेटवर्क को अभी और भविष्य के लिए उपयोगी बनाते हुए इसकी क्षमता को बढाया जाए। सुविधाओं के अभाव में
जीएसटी नेटवर्क से जुड़ी समस्याओं का हल यह बताया जा रहा है कि डीलर्स आखिरी तिथि के अंतिम तीन दिन रिटर्न नहीं भरे और अपने रिटर्न पहले ही भर ले ताकि अंतिम दिनों में होने वाले संख्या के आधिक्य के कारण जीएसटी नेटवर्क पर जो बोझ पड़ता है उससे बचा जा सके लेकिन यह कोई तर्क संगत उपाय नहीं है इसका उपाय यह है कि सर्वर की क्षमता को बढ़ाया जाए।
डीलर्स पर विश्वास और सरलीकरण ही जीएसटी की समस्त दुविधाओं का एकमात्र हल है और एक बात यहाँ ध्यान रखनी भी जरूरी है इस समय जीएसटी को एक स्थायित्व की जरूरत है और इसी कारण से जीएसटी इस समय नई दुविधाओं को झेलने की स्थिति में नहीं है इसलिए यह इनपुट टैक्स के 10 प्रतिशत के प्रावधान को तो फिलहाल स्थगित करना ही होगा।
9. करों की जो दरें तय की गई है उसमें वृद्धि नहीं की जाए। भवदीय भानु प्रकाश शर्मा प्रधान नगर व्यापार मडंल भिवानी इस अवसर पर रितेश मितल, लवली जावा, दीपक जागंडा, सुरेंद्र जिन्दल, राकेश समेत अनेक व्यापारी उपस्थित थे।